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प्रति॒ यत्स्या नीथाद॑र्शि॒ दस्यो॒रोको॒ नाच्छा॒ सद॑नं जान॒ती गा॑त्। अध॑ स्मा नो मघवञ्चर्कृ॒तादिन्मा नो॑ म॒घेव॑ निष्ष॒पी परा॑ दाः ॥

English Transliteration

prati yat syā nīthādarśi dasyor oko nācchā sadanaṁ jānatī gāt | adha smā no maghavañ carkṛtād in mā no magheva niṣṣapī parā dāḥ ||

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Pad Path

प्रति॑। यत्। स्या। नीथा॑। अद॑र्शि। दस्योः॑। ओकः॑। न। अच्छ॑। सद॑नम्। जा॒न॒ती। गा॒त्। अध॑। स्म॒। नः॒। म॒घ॒ऽवन्। च॒र्कृ॒तात्। इत्। मा। नः॒। म॒घाऽइ॑व। नि॒ष्ष॒पी। परा॑। दाः॒ ॥ १.१०४.५

Rigveda » Mandal:1» Sukta:104» Mantra:5 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:18» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:15» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे कैसे वर्त्ताव वर्त्तें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - सभा आदि के स्वामी ने (यत्) जो (नीथा) न्याय रक्षा को पहुँचाई हुई प्रजा (दस्योः) पराया धन हरनेवाले डांकू के (ओकः) घरके (न) समान पाली सी (अदर्शि) देख पड़ती है (स्या) वह (अच्छ) अच्छा (जानती) जानती हुई (सदनम्) घरको (प्रति, गात्) प्राप्त होती अर्थात् घरको लौट जाती है। हे (मघवन्) सभा आदि के स्वामी ! (निष्षपी) स्त्री के साथ निरन्तर लगे रहनेवाले तू (नः) हम लोगों को (मघेव) जैसे धनों को वैसे (मा, परा, दाः) मत बिगाड़े (अध) इसके अनन्तर (नः) हम लोगों के (चर्कृतात्) निरन्तर करने योग्य काम से (इत्) ही विरुद्ध व्यवहार मत (स्म) दिखावे ॥ ५ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे अच्छा दृढ़, अच्छे प्रकार रक्षा किया हुआ घर चोरों वा शीत, गर्मी और वर्षा से मनुष्य और धन आदि पदार्थों की रक्षा करता है वैसे ही सभापति राजाओं की अच्छी पाली हुई प्रजा इनको पालती है। जैसे कामी जन अपने शरीर, धर्म, विद्या और अच्छे आचरण को बिगाड़ता और जैसे पाये हुए बहुत धनों को मनुष्य ईर्ष्या और अभिमान से अन्यायों में फँसकर बहाते हैं वैसे उक्त राजा जन प्रजा का विनाश न करे किन्तु प्रजा के किये हुए निरन्तर उपकारों को जानकर अभिमान छोड़ और प्रेम बढ़ाकर इनको सब दिन पालें और दुष्ट शत्रुजनों से डरके पलायन न करें ॥ ५ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्ते कथं वर्त्तेयातामित्युपदिश्यते ।

Anvay:

सभादिपतिना यद्या नीथा प्रजा दस्योरोको न यथा गृहं तथा पालितादर्शि स्या साऽच्छ जानती सदनं प्रतिगात् प्रत्येति। हे मघवन् निष्षपी संस्त्वं नोऽस्मान् मघेव मा परादाः। अधेत्यनन्तरं नोऽस्माकं चर्कृतादिदेव विरुद्धं मा स्म दर्शय ॥ ५ ॥

Word-Meaning: - (प्रति) (यत्) या (स्या) सा प्रजा (नीथा) न्यायरक्षणे प्रापिता (अदर्शि) दृश्यते (दस्योः) परस्वादातुश्चोरस्य (ओकः) स्थानम् (न) इव (अच्छ) सुष्ठु निपातस्य चेति दीर्घः। (सदनम्) अवस्थितिम् (जानती) प्रबुध्यमाना (गात्) एति (अध) अथ (स्म) आनन्दे (नः) अस्मान् (मघवन्) सभाद्यध्यक्ष (चर्कृतात्) सततं कर्त्तुं योग्यात्कर्मणः (इत्) निश्चये (मा) निषेधे (नः) अस्माकम् (मघेव) यथा धनानि तथा (निष्षपी) स्त्रिया सह नितरां समवेतः (परा) (दाः) द्येरवखण्डयेर्विनाशयेः ॥ ५ ॥एतन्मन्त्रस्य कानिचित्पदानि यास्क एवं समाचष्टे−निष्षपी स्त्रीकामो भवति विनिर्गतपसाः पसः पसतेः स्पृशतिकर्मणः। मा नो म॒घेव॑ निष्ष॒पी परा॑ दाः। स यथा धनानि विनाशयति मा नस्त्वं तथा परादाः। निरु० ५ । १६।
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। यथा सुदृढं सम्यग्रक्षितं गृहं चोरेभ्यः शीतोष्णवर्षाभ्यश्च मनुष्यान् धनादिकं च रक्षति तथैव सभाधिपतिभी राजभिः सम्यग्रक्षिता प्रजैतान् पालयति यथा कामुकः स्वशरीरधर्मविद्याशिष्टाचारान् विनाशयति। यथा च प्राप्तानि बहूनि धनानीर्ष्याभिमानयोगेन मनुष्या अन्यायेषु बद्ध्वा हीनानि कुर्वन्ति तथा प्रजाविनाशं नैव कुर्युः। किन्तु प्रजाकृतान् सततमुपकारान् बुद्ध्वा निरभिमानसंप्रीतिभ्यामेतान् सदा पालयेयुः। नैव कदाचित् दुष्टेभ्यः शत्रुभ्यो भीत्वा पलायनं कुर्युः ॥ ५ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे चांगले रक्षण करणारे घर, चोर, थंडी, गर्मी व पाऊस यांच्यापासून माणसांचे व धनाचे रक्षण करते तसेच सभापती राजाकडून रक्षित प्रजेचे पालन होते. जसा कामी मनुष्य आपले शरीर, धर्म, विद्या व चांगले आचरण बिघडवतो व जसे अर्जित केलेले धन माणसे ईर्ष्या व अभिमान करून अन्यायात फसून नष्ट करतात तसे उक्त राजाने प्रजेचा नाश करू नये. प्रजेने केलेल्या निरंतर उपकारांना जाणून अभिमान सोडून प्रेम वाढवून त्यांचे सदैव पालन करावे व दुष्ट शत्रूंना घाबरून पलायन करू नये. ॥ ५ ॥